क्या महेश परमार मालवा में कांग्रेस के एक नए “क्षत्रप” के रूप में उभर रहे हैं ?

अब लग तो यही रहा है जिस प्रकार से हाल ही के दिनों में उन्होंने अपनी चुनावी परफारमेंस, रणनीति तथा कुशल प्रबंधन का उत्कृष्ट नमूना पेश किया है जिससे वह मालवा में कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में देखे जाने लगे हैं।
महेश परमार सन् 2018 में तराना विधानसभा से कांग्रेस के उम्मीदवार थे वहीं भाजपा से अनिल फिरोजिया जो तत्कालीन (विधायक) थे वा वर्तमान समय में उज्जैन से (सांसद) हैं उन्हें 2209 वोटों से चुनाव हराकर तराना के नए विधायक बने थे। 2013, 2008 और 2003 में भाजपा के उम्मीदवार तराना से चुनाव जीते थे। 15 साल बाद यह सीट कांग्रेस की झोली में गई थी।महेश परमार को लोग एक कर्मठ नेता के रूप में देखते हैं लोग बताते हैं कि उन्हें जो जिम्मेदारी दी जाती है उसे बड़ी ही निष्ठा पूर्वक निभाने का प्रयास करते हैं।
वह जनता के सामने अपनी बात को गोलमोल घुमाने के बजाय बड़ी ही स्पष्ट ढंग से रखते हैं। सन् 2020 में जब मध्यप्रदेश में आगर विधानसभा का उपचुनाव हो रहा था तब कमलनाथ ने महेश परमार को उपचुनाव की जिम्मेदारी दी थी।आगर RSS की प्रयोगशाला तथा BJP,RSS के गढ़ के रूप में देखा जाता था। भाजपा की परंपरागत आगर सीट में 2020 के उपचुनाव मे कांग्रेस का झंडा फहराया था।
हाल ही में उन्हें उज्जैन ननि का प्रत्याशी कांग्रेस ने बनाया था उज्जैन बाबा महाकाल की नगरी,धर्म की नगरी होने के कारण इसे RSS,BJP का कोर क्षेत्र माना जाता है वहां महेश परमार को मात्र 700 वोटो से चुनावी मे हार मिली तथा लगभग एक लाख 32 हजार मत मिले। वहीं तराना नगर परिषद में 15 सीटों में 10 सीट कांग्रेस जीती है।वही उज्जैन जनपद पंचायत में कांग्रेस की विंध्या पवार चुनाव जीती हैं और इस जनपद पंचायत चुनाव की चर्चा पूरे प्रदेश भर में हैं क्योंकि ताकतवर मंत्री मोहन यादव को धरना प्रदर्शन देना पडा।
बता दें उज्जैन जनपद पंचायत में उज्जैन दक्षिण विस की कई पंचायतें आती हैं जो मंत्री मोहन यादव का विस क्षेत्र है यह हार मोहन यादव की खुद की मानी गई।इसके बाद महेश परमार ने तराना जनपद पंचायत में अजय रुद्र प्रताप सिंह को अपना अध्यक्ष बनाया वहां भी भाजपा की करारी शिकस्त हुई।
इन सब चुनावी परिणामों के बाद महेश परमार की चर्चा पूरे प्रदेश भर में हो रही है कांग्रेसी उन्हें उदाहरण देकर चुनाव लडने,रणनीति प्रबंधन की बात कर रहे हैं।महेश परमार कि नेता उन नेताओं में होती है जो 24×7 वा 365 दिन की राजनीति करते हैं महेश परमार जमीनी राजनीति करते है जिससे उन्हें जमीनी नेता माना जाता है। महेश परमार दिनों दिन अपनी जमीन उज्जैन तथा मालवा के अन्य क्षेत्रों में मजबूत कर रहे हैं वह कमलनाथ के प्राण प्यारे तो है ही अब वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी अपनी जड़ों को मजबूत बना रहे हैं।