राहुल गांधी जब अध्यक्ष बने तब कांग्रेस के कुछ सीनियर नेताओं ने इकट्ठा होकर कई बार सोनिया गांधी के जरिए राहुल गांधी के फैसले बदलवा दिए। सोनिया गांधी को सबकी सुननी पड़ती थी। राहुल तब भी ये मानते थे की ये ‘कुछ’ नेता पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं और सरकार के खिलाफ बोलते भी नहीं।
लोगों के लिए ये मानना मुश्किल है की सोनिया गांधी कई बार राहुल के फैसले दरकिनार कर, वरिष्ठ नेताओं की सुनती थीं, लेकिन यही तथ्य है।राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से कई बार मना करने के पीछे ये वजह है की वे उन सीनियर नेताओं के साथ काम नहीं करना चाहते जिन्होंने उस वक्त साथ नहीं दिया था।
राहुल गांधी को यूपीए 1 सरकार के दौरान मंत्री और यूपीए 2 के दौरान प्रधानमंत्री बन जाने का खुला ‘ऑफर’ दिया गया था। एक बार उन्होंने बताया था की मंत्री इसलिए नहीं बना क्योंकि सत्ता के दो केंद्र नहीं बनाना चाहता था और PM इसलिए नहीं बना क्योंकि मनमोहन सिंह को रिप्लेस करना उचित नहीं था।
राहुल गांधी खुद सत्ता में नहीं आए लेकिन युवा चेहरे जैसे जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, सचिन पायलट, आर पी एन, प्रदीप जैन, भंवर जितेंद्र सहित कई युवा नेताओं को मंत्री बनवाया,।
मनमोहन सिंह से मिलकर शिकायत भी की कि कैबिनेट मंत्री इनको काम नहीं देते। ये बात भी बड़े नेताओं को ‘अखर’ गई थी। राहुल युवाओं को पार्टी में उस समय से मौक़ा देते आ रहे है जब वरिष्ठ नेताओं का पार्टी में बोल बाला रहा था।
कांग्रेस के 50 साल सरकार में लगातार ग़ुलाम नबी आज़ाद को पद दिया जिसमें वह मुख्यमंत्री, 2 बार सांसद लोकसभा, केंद्रीय मंत्री, 5 बार राज्यसभा सांसद, पार्टी के महासचिव, सीडबल्यूसी के पर्मनेंट मेम्बर तक बनाया आख़िर में सब भूल कर पार्टी को बुरे दौर में अलविदा कह दिया।
ग़ुलाम नबी आज़ाद ने राहुल गांधी को बुरा कहने से भी नहीं चूके और यह वो राहुल है जिन्होंने आज़ाद को राज्यसभा ने विपक्ष का नेता बनाने में सबसे बड़ी अहम भूमिका निभाई।